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      प्रिया वाचक मित्रों आज मैं आपके लिए नदी की आत्मकथा हिंदी निबंध ( Nadi ki aatmkatha Hindi nibandh) लेकर आया हूं। इस निबंध को आप में नदी बोल रही हूं । या फिर नदी बोलने लगी तो ऐसे भी नामों से लिख सकते हैं।
तो चलिए ज्यादा देर ना लगाते हुए पढ़ते हैं नदी की आत्मकथा( Nadi ki aatmkatha essay in Hindi )

नदी की आत्मकथा
नदी की आत्मकथा

| नदी की आत्मकथा 

| Nadi ki atmakatha essay in Hindi

 |autobiography of river in Hindi

    हे मेरे प्यारे पुत्र मेरी बात सूनो बहुत दिनो के बाद मेरे पास आपसे बात करने का खाली समय है। आप भी थोड़ा सा खाली समय निकालकर मेरी बातें सुन लीजिए। मैं नदी हूं। तुम  मेरे पानी में बहुत खेले हो। तुम जैसे जैसे बड़े होते जाते हो तुम्हारी प्रगति देख कर मैं भी बहुत खुश हो जाती हूं।

    मैं तो नदी हूं। हजारों सालों से बह रही हूं। मैंने अपनी आंखों से ना केवल वर्तमान जाति को देखा है बल्कि हजारों वर्षों से मेरे तटों पर आए अनगिनत जीवो के जीवन चक्र को भी भली-भति देखा है। मेरे तक पर जो भी रहने आया है उस हर एक जीव की देखभाल मैंने की है। मेरे तट पर जो पूरी भावना के साथ रहता है उसकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है।
     
      मैंने इंसानों के आदिमानव अवस्था से वर्तमान प्रगत मानव के संक्रमण का दृश्य रूपसे अनुभव भी किया है। जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है आदमी के जीवन शैली में भी काफी बदलाव हो रहे हैं। प्रारंभिक अवस्था में पेड़ों की छाल पहनने वाले आज बहुत ही सुंदर सुंदर कपड़े पहनते हैं।
  
|नदी की आत्मकथा निबंध हिंदी मध्ये

      आज के मनुष्य ने जो प्रगति की है उसे देखकर मुझे बहुत ही गर्व महसूस होता है। मैंने मनुष्य के जीवन में हो रहे अनेको परिवर्तनों को इतने करीब से देखा है, जिनके बाद में यह तुम्हें बताना चाहूंगी कि, जिंदगी कभी भी रुकती नहीं है बस चलती ही रहती है जैसे मैं बहती रहती हूं वैसे जिंदगी भी आगे की ओर चलती रहती है किसी के लिए भी रुकती नहीं है।

   कभी भी ना रुकते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहना ही मेरा स्वभाव है। इंसानों ने मेरी धाराओं में बड़े-बड़े बांध बनवा कर मेरा पानी रोक लिया। इन बांधों में जमा हुए पानी को खेती के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। इसी कारणवश फसल भी अच्छी तरह से आ रही है और मनुष्य की आर्थिक स्थिति भी सक्षम हुई है। अपने इस बढ़िया सोच के लिए मैं तुम सभी मनुष्य को बधाई देना चाहती हूं।
     
|नदी की आत्मकथा पर अनुच्छेद

       मेरे प्रवाह को रोक कर आप लोगों ने जो बांध बनाए हैं यदि इन बांधों के कारण आपको लाभ होता है तो मैं इसे मेरी उपयोगिता ही मानूंगी। लेकिन अगर इन बांधों की देखभाल ठीक से नहीं की तो जो संकट आएंगे उसके लिए इंसान ही जिम्मेदार होंगे और इसके लिए आपको हमेशा तैयार भी रहना चाहिए। हाल ही में बांधों के फटने से जान मल का बड़ा नुकसान हुआ है  ऐसी खबर मेरे कानों में आई है यह सोच कर मुझे बहुत ही दुख  हुआ।

     प्रगति के नाम पर मनुष्य बहुत ही लापरवाही बरतना हुआ प्रतीत होता है। इसलिए मैं अब बहुत ही चिंतित हूं। मेरी दिल से इच्छा है कि आप लोग बहुत ही प्रगति करें। सफलता की छूकर आप अपना जीवन और भी सुंदर बनाएं। लेकिन प्रगति करते हुए एक बात को नहीं भूलना है, आपको प्रकृति का संतुलन कभी भी बिगाड़ना नहीं है। इसलिए बहुत ही दिल से प्रकृति को बचाना सीखो। प्रकृति बचेगी तभी तो हम बच सकेंगे। 

     इंसानों ने बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां बनवाई  इन फैक्ट्रियों से निकलने वाला पानी मेरे पानी में डाल दिया। इस दूषित पानी के कारण मेरा पानी भी दूषित हो गया और मेरे अंदर रहने वाले बहुत सारे जीव मर गए। हिंदुत्व जीवो को देखकर मुझे बहुत ही कष्ट हुआ।
   
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    मेरा तुम से निवेदन है कि मेरे पानी को दूषित होने से बचाने के लिए फैक्ट्रियों से निकलने वाले पानी को शुद्ध करो फिर उसके बाद उसे मुझ में छोड़ दो। ऐसा करने से प्रकृति की हानि भी नहीं होगी आप तुम्हारी आवश्यकता भी अवश्य पूरी हो जाएगी। मेरी एक बात कभी भी मत भुलिएगा कि प्रकृति आपकी जरूरत अवश्य पूरी कर सकती है, लेकिन आपके लालच को कभी भी पूरा नहीं कर सकती।

   नदी के किनारों पर बड़ी संख्या में पेड़ लगाने चाहिए। यह पेड़ किनारों की मिट्टी के कटाव को रोकते हैं। यह बात हमेशा ध्यान में रखी है और प्रकृति का संरक्षण करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाइए।

     मैं नदी बोल रही हूं । यह भूल कर आप लोगों ने मेरे बातें ध्यान से सुनी। इसके लिए मैं आपको बहुत ही धन्यवाद देती हूं।

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